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   1) कड़ाही kaṛāhī (p. 759)

कड़ाही kaṛāhī

संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ कड़ाह]

छोटा कड़ाहा, जो लोहे पीतल, चाँदी आदि का बनता है ।
    क्रि॰ प्रचढ़ना=आँच पर रखा जाना ।—चढ़ाना=आँच पर रखना ।
    मुहा॰कड़ाही करना=कढ़ाही चढ़ना । मनौती पूरी होने पर किसी देवी देवता की पूजा के लिये हलवा पूरी करना । कड़ाही में हाथ डालना=अग्निपरीक्षा देना ।
    यौ॰कड़ाही पूजन=किसी शुभ कार्य के निमित्त पकवान बनाने के लिये कड़ाही चढ़ाने के पहले उसकी पूजा करना ।

   2) करही karahī (p. 816)

करही karahī

संज्ञा स्त्री॰ [देश॰]

वह दाना जो पीटने के बाद बाल में लगा रह जाता है । उ॰— कहुँ करही उबलत, सूखत, महजूम बनत कहूँ पर ।—प्रेमघन॰, भा॰ , पृ॰ ३४. शीशम की तरह का एक प्रकार का वृक्ष जिसके पत्ते शीशम के पत्तों से दूने बड़े होते हैं । इसकी लकड़ी बहुत भारी होती और प्रायः इमारत के काम में आती है ।

   3) कराही karāhī (p. 819)

कराही karāhī

संज्ञा स्त्री॰ [हि॰ कराह का स्त्री॰] दे॰

'कड़ाही' । उ॰— तेल चोर कहँ तेल कराही, घृत चोरहि घृत माँझ गिराही ।— कबीर सा॰, पृ॰ ४६७