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प्रकाशिका

'हिंदी शब्दसागर' अपने प्रकाशनकाल से ही कोश के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के दिशानिर्दीशक के रूप में प्रतिष्ठत हैप । तीन दशक तक हिंदी की मूर्धन्य प्रतिभाओं ने अपनी सतत तपस्या से इसे सन् १९२८ ई० में मूर्त रूप दिया था । तब से निरंतर यह ग्रंथ इस क्षेत्र में गंभीर कार्य करनेवाले वेद्बतसमाज में प्रकाशस्तंभ के रूप में मर्यादित हो हिंदी की गौरवगरिमा का आख्यान करता रहा है । अपने प्रकाशन के कुछ समय बाद ही इसके खंड एक एक कर अनुपलब्ध होते गए और अप्राप्य ग्रंथ के रूप में इसका मूल्प लोगों को सहस्र मुद्राओं से भी अधिक देना पड़ा । ऐसी परिस्थिति में अभाव की स्थिति का लाभ उठाने की द्दष्टि से अनेक कोशों का प्रकाशन हिंदी जगत् में हुआ, पर वे सारे प्रयत्न इसकी छाया के ही बल जीवित थे । इसलिये निरंतर इसकी पुन: अवतारणा का गंभीर अनुभव हिंदी जगत् और इसकी जननी नागरीप्रचारिणी सभा करती रही, किंतु साधन के अभाव में अपने इस कर्तव्य के प्रति सजग रहती हुई भी वह अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह न कर सकने के कारण मर्मांतक पीड़ा का अनुभव कर रही थी । दिनोत्तर उसपर उत्तरदायित्व का ऋण चक्रवृद्धि सुद की दर से इसलिये और भी बढ़ता गया कि इस कोश के निर्माण के बाद हिंदी की श्री का विकास बड़े व्यापक पैमाने पर हुआ । साथ ही, हिंदी के राष्ट्रभाषा पद पर प्रतिष्ठित होने से उसकी शब्दसंपदा का कोश भी दिनोत्तर गतिपूर्वक बढ़ते जाने के कारण सभा का यह दायित्व निरंतर गहन होता गया ।

सभा की हीरक जयंती के अवसर पर, २२ फाल्गुन, २०१०वि० को, उसके स्वागताध्यक्ष के रूप में डा० संपूर्णानंद जी ने राष्ट्रपति राजेंद्रप्रसाद जी एवं हिंदीजगत् का ध्यान निम्नांकित शब्दों में इस ओर आकृष्ट किया—'हिंदी के राष्ट्रभाषा घोषित हो जाने से सभा का दायित्व बहुत वढ़ गया है ।... हिंदी में एक अच्छे कोश और व्याकरण की कमी खटकती है । सभा ने आज से कंई वर्ष पहले जो हिंदी शब्दसागर प्रकाशित किया था उसका बृहत् संस्करण निकालने की आवश्यकता है ।...आवश्यकता केवल इस बात की है कि इस काम के लिये पर्याप्त धन व्यय किया जाय और केंद्रीय तथा प्रादेशिक सरकारों का सहारा मिलता रहे ।'

इसी अवसर पर सभा के विभिन्न कार्यें की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा—'वैज्ञानिक तथा पारिभाषिक शब्दकोश सभा का महत्वपूर्ण प्रकाशन है । दूसरा प्रकाशन हिंदी शब्दसागर है जिसके निर्माण में सभा ने लगभग एक लाख रुपया व्यय किया है । आपने शब्दसागर का नया संस्करण निकालने का निश्चय किया है । जब से पहला संस्करण छपा, हिंदी में बहुत बातों में और हिंदी के अलावा संसार में बहुत बातों में बड़ी प्रगति हुई है । हिंदी भाषा भी इस प्रगति से अपने को वंचित नहीं रख सकती । इसलिये शब्दसागर का रूप भी ऐसा होना चाहिए जो यह प्रगति प्रतिबिंबित कर सके और वैज्ञानिक युग के विद्यार्थियों के लिये भी साधारणतः पर्याप्त हो । मैं आपके निश्चयों का स्वागत करता हूँ । भारत सरकार की और से शब्दसागर का नया संस्करण तैयार करने के सहायतार्थ एक लाख रुपए, जो पाँच वर्षें में बीस बीस हजार करके दिए जाएँगे, देने का निश्चय हुआ है । मैं आशा करता हूँ कि इस निश्चय से आपका काम कुछ सुगम हो जाएगा और आप इस काम में अग्रसर होंगे ।'

राष्ट्रपति डा० राजेंद्रप्रसाद जी की इस घोषणा ने शब्दसागर के पुनः संपादन के लिये नवीन उत्साह तथा प्रेरणा दी । सभा द्बारा प्रेषित योजना पर केंद्रीय सरकार के शिक्षामंत्रालय ने अपने पत्र सं० एफ/४-३ ।५४ एच० दिनांक ११ ।५ ।५४ द्बारा एक लाख रुपया पाँच वर्षें में, प्रति वर्ष बीस हजार रुपए करके, देने की स्वीकृति दी ।

इस कार्य की गरिमा को देखते हुए एक परागर्शमंडल फा गठन किया गया, इस संबंध में देश के विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी विद्बानों की भी राय ली गई, किंतु परामर्शमंडल के अनेक सदस्यों का योगदान सभा को प्राप्त न हो सका और जिस विस्तृत पैमाने पर सभा विद्बानों की राय के अनुसार इस कार्य का संयोजन करना चाहती थी, वह भी नहीं उपलब्ध हुआ । फिर भी, देश के अनेक निष्णात अनुभवसिद्ध विद्बानों तथा परामर्शमंडल के सदस्यों ने गंभीरतापूर्वक सभा के अनुरोध पर अपने बहुमूल्य सुझाव प्रस्तुत किए । सभा ने उन सबको मनोयोगपूर्वक मथकर शब्दसागर के संपादन हेतु सिद्धांत स्थिर किए जिनसे भारत सरकार का शिक्षामंत्रालय भी सहमत हुआ ।

उपर्युक्त एक लाख रुपए का अनुदान बीस बीस हजार रुपए प्रति वर्ष की दर से निरंतर पाँच वर्षें तक केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय देता रहा और कोश के संशोधन, संवर्धन और पुनः संपादन का कार्य लगातार होता रहा, परंतु इस अवधि में सारा कार्य निपटाया नहीं जा सका । मंत्रालय के प्रतिनिधि श्री डा० रामधन जी शर्मा ने बड़े मनोयोगपूर्वक यहाँ हुए कार्यें का निरीक्षण परीक्षण करके इसे पूरा करने के लिये आगे और ६५,०००) अनुदान प्रदान करने की संस्तुति की जिसे सरकार ने कृपापूर्वक स्वीकार करके पुनः उक्त ६५,०००) का अनुदान दिया । इस प्रकार संपूर्ण कोश का संशोधन संपादन दिसंबर, १९६५ में पूरा हो गया ।

इस ग्रंथ के संपादन का संपूर्ण व्यय ही नहीं, इसके प्रकाशन के व्यभार का ६० प्रतिशत बोझ भी दो खंडों तक भारत सरकार ने वहन किया है, इसीलिये यह ग्रंथ इतना सस्ता निकालना संभव हो सका है । उसके लिये शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का प्रशंसनीय सहयोग हमें प्राप्त है और तदर्थ हम उनके अतिशय आभारी हैं ।

संपूर्ण शब्दसागर के प्रकाशन पर कुल ३,३७, ७२३०.८६ व्यय हुए हैं जिसमें केंद्रीय सरकार की समय समय पर मिली सहायता की समस्त राशि २१, १७०-००० है । इसके अतिरिक्त प्रत्येक खंड की ५,००० रु० मूल्य की प्रतियाँ क्रय करके भी सरकार हमें निरंतर उत्साहित करती रही । वस्तुतः इस ग्रंथ को इतने शीघ्र और परिपुर्ण रूप में हिंदी जगत् को भेंट करने का अधिकांश श्रेय सरकार की उपयुर्क्त
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सामयिक सहायता को ही है और तदर्थ तदर्थ हम उसके प्रति आंतरिक रूप से आभारी हैं ।

जिस रूप में यह ग्रंथ हिंदीजगत् के संमुख उपस्थित किया जा रहा है, उसमें अद्यतन विकसित कोशशिल्प का यथासामर्थ्य उपयोग और प्रयोग किया गया है, किंतु हिंदी की और हमारी सीमा है । यद्यपि हम अर्थ और व्युत्पत्ति का ऐतिहासिक क्रमविकास भी प्रस्तुत करना चाहते थे, तथापि साधन की कमी तथा हिंदी ग्रंथों के कालक्रम के प्रामाणिक निर्धारण के अभाव में वैसा कर सकना संभव नहीं हुआ । फिर भी यह कहने में हमें संकोच नहीं कि अद्यतन प्रकाशित कोशों में शब्दसागर की गरिमा आधुनिक भारतीय भाषाओं के कोशों में अतुलनीय है और इस क्षेत्र में काम करनेवाले प्रायः सभी क्षेत्रीय भाषाओं के विद्बान् इससे आधार ग्रहण करते रहेंगे । इस अवसर पर हम हिंदीजगत् को यह भी नम्रतापूर्वक सूचित करना चाहते हैं कि सभा ने शब्दसागर के लिये एक स्थायी विभाग का संकल्प किया है जो बराबर इसके प्रवर्धन और संशोधन के लिये कोशशिल्प संबंधी अद्यतन विधि से यत्नशील रहेगा ।

शब्दसागर के इस संशोधित प्रवधिंत रूप में शब्दों की संख्या मूल शब्दसागर की अपेक्षा दुगुनी से भी अधिक हो गई है । नए शब्द हिंदी साहित्य के आदिकाल, संत एवं सूफी साहित्व (पुर्व मध्यकाल), आधुनिक काल, काव्य, नाटक, आलोचना, उपन्यास आदि के ग्रंथ, इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, वाणिज्य आदि और अभिनंदन एवं पुरस्कृत ग्रंथ, विज्ञान के सामान्य प्रचलित शब्द और राजस्थानी तथा डिंगल, दक्खिनी हिंदी और प्रचलित उर्दु शैली आदि से संकलित किए गए हैं ।

हिंदी शब्दसागर का यह संशेधित परिवर्धित संस्करण कुल एकादश खंडों में पूरा हो रहा है । इसका पहला खंड पौष, संवत् २०२२ वि० में छपकर तैयार हो गया था । इसके उद्घाटन का समारोह भारत गणतंत्र के प्रधान मंत्री स्वर्गीय माननीय श्री लालबहादुर जी शास्त्री द्बारा प्रयाग में ३ पौष, सं० २०२२ वि० (१८ दिसंबर, १८६५) को भव्य रूप से सजे हुए पंडाल में काशी, प्रयाग एवं अन्यान्य स्थानों के बरिष्ठ और सुप्रसिद्ध साहित्यसेवियों, पत्रकारों तथा गण्यमान्य नागरिकों की उपस्थिति में संपन्न हुआ । समारोह में उपस्थित महानुभावों में विशेष उल्लेख्य माननीय श्री पं० कमलापति जी त्रिपाठी, हिंदी विश्वकोश के प्रधान संपादक श्री डा० रामप्रसाद जी त्रिपाठी, पद्मभूषण कविवर श्री पं० सुमित्रानंदन जो पंत, श्रीमती महादेवी जी वर्मा आदि हैं । इस संशोधित संवर्धित संस्करण की सफल पूर्ति के उपलक्ष्य में इसके समस्त संपादकों को एक एक फाउटेन पेन, ताम्रपत्र और ग्रंथ की एक एक प्रति माननीय श्री शास्त्री जी के करकमलों द्बारा भेंट की गई । उन्होंने अपने संक्षिप्त सारगर्भित भाषण में इस सभा की विभिन्न प्रवृत्तियों की चर्चा की और कहाः 'सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य करनेवाली यह सभा अपने ढंग की अकेली संस्था है । हिंदी भाषा और साहित्य की जैसी सेवा नागरीप्रचारिणी सभा ने की है वैसी सेवा अन्य किसी संस्था ने नहीं की । भिन्न भिन्न विषयों पर जो पुस्तके इस संस्था ने प्रकाशित की हैं वे अपने ढंग के अनुठे ग्रंथ हैं और उनसे हमारी भाषा और साहित्य का मान अत्याधिक बढ़ा है । सभा ने समय की गति को देखकर तात्कालिक उपादेयता के वे सब कार्य हाथ में लिए हैं जिनकी इस समय नितांत आवश्यकता है । इस प्रकार यह निस्संकोच कहा जा सकता है कि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में यह सभा अप्रतिम है' ।

प्रस्तुत ग्यारहवें खंड में 'स्कंक' से लेकर 'ह्वेल' तक के शब्दों का संचयन है । नए नए शब्द, उदाहरण, यौगिक शब्द, मुहावरे, पर्यायवाची शब्द और महत्वपूर्ण ज्ञातव्य सामग्री 'विशेष' से सवलिंत इस भाग की शब्दसंख्या लगभग १०,००० है । अपने मूल रूप में यह अंश कुल १५८ पृष्ठों में था जो अपने विस्तार के साथ इस परिवर्धित संशोधित संस्करण में लगभग २५० पृष्ठों में आ पाया है ।

संपादकमंडल के प्रत्येक सदस्य ने यथासामर्थ्य निष्ठापूर्वक इसके निर्माण में योग दिया है । स्व० श्री कृष्णदेवप्रासद गौड़ नियमित रूप से नित्य सभा में पधारकर इसकी प्रगति को विशेष गंभीरतापूर्वक गति देते थे और पं० करुणापति त्रिपाठी ने इसके संपादन और संयोजन में प्रगाढ़ निष्ठा के साथ अस्वस्थ होते हुए भी घर पर, यहाँ तक कि यात्रा पर रहने पर भी, पूरा योग दिया है । यदि ऐसा न होता तो यह कार्य संपन्न होना संभव न था । हम अपनी सीमा जानते हैं । संभव है, हम सबके प्रयत्न में त्रुटियाँ हों, पर सदा हमारा परिनिष्ठित यत्न यह रहेगा कि हम इसको और अधिक पूर्ण करते रहें क्योंकि ऐसे ग्रंथ का कार्य अस्थायी नहीं, सनातन है ।

अंत में शब्दसागर के मूल संपादक तथा सभा के संस्थापक स्व० डा० श्यामसुंदरदास जी को अपना प्रणाम निवेदित करते हुए, यह संकल्प हम पुनः दुहराते हैं कि जब तक हिंदी रहेगी तब तक सभा रहेगी और उसका यह शब्दसागर अपने गौरव से कभी न गिरेगा । इस क्षेत्र में यह नित नूतन प्रेरणादायक रहकर हिंदी का मानवर्धन करता रहेगा और उसका प्रत्येक नया संस्करण और भी अधिक प्रभोज्वल होता रहेगा ।

इस महायज्ञ में हमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अनेक सरकारों संस्थाओं, विद्बानों और अन्यान्य क्षेत्र के सुधी सज्जनों से निरंतर सहयोग सहायता मिलती रही है । इसके वास्तविक श्रेंयभागी ये ही हैं, मै तो निमित्त मात्र हूँ । इन सभी को एतदर्थ मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ ।

ना० प्र० सभा, काशी:

चैत्र शु० १,२०३२ वि०

सुधाकर पांडेय

प्रधान मंत्री

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